गुजरात कंट्रोल ओफ टेरिरीजम एन्ड ओर्गेनाईझ क्राईम कानुन के तहत गुजरात राज्यमां 23 केस फाईल है. जीस में विशाल गोस्वामी और उनकी गेंग के अन्य 11 सागरीतो का समावेश होता है. जीसके सामने पहला केस फाईल हुआ था.
विशाल का नाम एक्सटोर्शन के साथ जुडा हुआ है. यह पुरी रैकेट विशाल जेलबंद होने के बावजुद भी चल रहा था. पुलिस ने उसके और गिरोह के सदस्यो के खिलाफ गुजसीटोक के तहत शिकायत लिखी है. विशाल उत्तर प्रदेश राज्य के रहनेवाला है. जो शहर मे हथियार, डकैतियों और हत्या के आरोपसर गिरफ्तार कीये जाने के बाद जेल में सजा काट रहा है
अक्टुबर 2020 में सुल्तानखान पठान और उसके गिरोह के साथ एक ही अधिनियम के अंतर्गत यह मामला दर्ज हुआ था. पठान और उसके गिरोह पर वेजलपुर, असलाली और सरखेज के विस्तार में बुटलेगिंग, जमीन हडपने, हत्या के प्रयास और धमकी जैसे दुसरे गंभीरआरोप दर्ज है. दुसरी और सौराष्ट्र के जामनगर के खुंखार जमीन माफिया जयेश राणपरिया और 13 अन्य शख्स पर भी अक्टुबर 2020 में गुजसीटोक के तहत मामला दर्ज किया गया था.
जामनगर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया की, जयेश बाद में ब्रिटन भाग गया था. जो फिलहाल ब्रिटन की जेल में है. उसको भारत वापस भेजने की प्रक्रिया चालु है. कुछ अधिकारिक आंक के अनुसार ईस अधिनियम के तहत दी.30 जून 2021 तक गुजरात के 15 जिलों में कुल 23 मामले दर्ज किए गए हैं। इस अधिनियम के तहत दर्ज 253 आरोपियों में से 199 को गिरफ्तार कर पुलिस ने सलाखों के पीछे डाल दिया है, 54 अभी भी फरार हैं। गुजरात पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट किया कि उनके खिलाफ विभिन्न थानों में विभिन्न धाराओं के तहत कुल 1811 जमीनी मामले दर्ज हैं।
गुजरात के डीजीपी आशिष भाटिया ने कहा की, यह कानुन राज्य में ओर्गेनाईज क्राईम को रोकने में हानिकारक साबित हुआ है. यह सभी अपराधियो के कारनामे पर अकुंश लगाया गया है. जिससे गुजरात में कानुन व्यवस्था और अपराध की स्थिति सुधार ने में बडी मदद मिली है
गुजरात सरकार के लिये दी. 1 दिसंबर 2019 से गुजरात सरकार के लिए एक लंबा इंतजार था। गुजसीकोट कानुन को मकोका (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) की तर्ज पर तैयार किया गया था. 2003 में गुजरात विधानसभा में पारित किया गया था. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नवेम्बर 2019 में परवानगी से पहेले ईस बिल को तीन बार रीजेक्ट किया गया. रामनाथ कोविंद के पहेले वर्ष 2004 में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम दिल्ही में थे. साल 2008 में फीर से ईस बिल को पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को भेजा गया. उसके बाद साल 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भेजा गया था.