‘मैं, ……… के मुख्यमंत्री के रूप में ईश्वर की शपथ लेता हूं। सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा’।… यह मौका किसी राजनेता के जीवन के स्वर्णिम काल में आता है। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस के लिए यह मौका तीसरी बार आने वाला था , पहले राजभवन में लगी दो कुर्सी इस तरफ इशारा की कर रही थी और मीडिया चिल्ला चिल्ला कर उन्हें मुख्यमंत्री घोषित कर चूका था , उनके हावभाव भी यही बता रहे थे।
ऐन मौके पर सियासी समीकरण कुछ ऐसा बदला कि सीएम की कुर्सी उनसे दूर हो गई। ऐसे में सीएम पद की शपथ वाली सुर्खियों में शामिल फडणवीस ने राजभवन में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली।
महाराष्ट्र में फडणवीस कोई पहला नाम नहीं है, जिनका सीएम बनने के बाद अगले कार्यकाल में ‘डिमोशन’ हुआ है। इसकी लंबी फेहरिस्त है। यही भारतीय राजनीति है जिसमे आखिरी समय में फैसले होते हैं और कुर्सी हाथ से निकल जाती है , थानेदार को सिपाही , और सिपाही की थानेदार बनाने का खेल भाग्य के प्रति भरोषा जता देता है।
महाराष्ट्र के बदलते सियासी घटनाक्रम के बीच गुरुवार को एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के सीएम पद की शपथ ली। वहीं देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री बनाए गए।
हालांकि इससे पहले वो सरकार में शामिल नहीं होने का ऐलान कर चुके थे लेकिन बीजेपी आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद डेप्युटी सीएम की कुर्सी पर बैठने को राजी हो गए।
फडणवीस से पहले महाराष्ट्र की अलग-अलग सरकारों में नारायण राणे, अशोक चव्हाण, शिवाजी राव निलांगेकर ऐसे नाम हैं जिनका मुख्यमंत्री बनने के बाद एक तरह से ‘डिमोशन’ हुआ।
दो बार मुख्यमंत्री की शपथ ले चुके फडणवीस ने ली उपमुख्यमंत्री की शपथ
महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस बीजेपी के सबसे बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं। देवेंद्र फडणवीस 2014 से लेकर 2019 महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। 2019 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी फडणवीस की अगुवाई में सबसे अधिक सीटें जीतने में सफल रही।
लेकिन मुख्यमंत्री को लेकर खेल पलट गया ,शिवसेना उनको मुख्यमंत्री बनाने को तैयार नहीं थी , फडणवीस मुख्यमंत्री से कम कुछ बनने को तैयार नहीं थे , इसलिए एनसीपी के अजीत पवार के साथ मिलकर मुख्यमंत्री की शपथ ले ली , लेकिन सुबह हुयी शपथ सदन तक नहीं जा पायी , अजीत पवार वापस एनसीपी में चले गए और शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी।
अब जब शिवसेना के बागी विधायकों और बीजेपी की सरकार बनी तो फडणवीस को सीएम के चेहरे के तौर पर देखा जा रहा था। लेकिन पार्टी आलाकमान ने उनका कद घटा दिया। ऐसे में फडणवीस को महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी।
2008 से 2010 तक सीएम रहे अशोक चव्हाण उद्धव सरकार में बने मंत्री
कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण 2008 से 2010 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। दरअसल 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमलों के बाद तत्कालीन विलासराव देशमुख सरकार ने इस्तीफा दे दिया था।
इसके बाद अशोक चव्हाण ने बतौर मुख्यमंत्री शपथ ली थी। इसके बाद 2019 में महाराष्ट्र में जब उद्धव ठाकरे की अगुवाई में कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना की महा विकास अघाड़ी सरकार बनी तो अशोक चव्हाण कैबिनेट मंत्री बनाए गए।
नारायण राणे: पहले सीएम रहे फिर मंत्री भी
शिवसेना, कांग्रेस, और अब बीजेपी के नेता बने नारायण राणे 1 फरवरी 1999 से लेकर 17 अक्टूबर 1999 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद पद से इस्तीफा दे दिया। 2005 में उद्धव ठाकरे से मतभेद के बाद 3 जुलाई 2005 को शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए और कांग्रेस में राजस्व मंत्री बने।
इसके बाद 2009 में महाराष्ट्र के उद्योगमंत्री बने। 2014 में लोकसभा चुनाव में बेटे नीलेश की हार के बाद अपने मंत्री पद से इस्तीफा दिया। मौजूदा समय राणे नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं।
मुख्यमंत्री बनने के बाद निलंगेकर फडणवीस की सरकार में बने मंत्री
शिवाजी पाटिल निलंगेकर मराठावाड़ा क्षेत्र के लातूर के रहने वाले थे। वह 1985-86 में राज्य के मुख्यमंत्री थे। उनके ऊपर आरोप लगा था कि उन्होंने अपनी बेटी और उसकी दोस्त की एमडी परीक्षा में मदद के लिए नतीजों में छेड़छाड़ की थी।
इन आरोपों के बाद उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। शिवाजी राव निलांगेकर मुख्यमंत्री रहने के बाद देशमुख सरकार में मंत्री बने थे। उन्हें लातूर के एक शक्तिशाली सहकारी नेता के रूप में जाना जाता था। उनके पोते संभाजी पाटिल बीजेपी के विधायक हैं। संभाजी देवेंद्र फडनवीस की सरकार में राज्य के श्रम मंत्री थे।
मध्य प्रदेश के सीएम रहे कैलाश जोशी, बने थे उद्योग मंत्री
कैलाश जोशी मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक थे। वह जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे ,14 जुलाई 1929 में जन्में कैलाश जोशी 1952 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के दौरान पार्टी के संस्थापक सदस्य भी रहे थे।
1972 से 1977 तक जोशी मध्य प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रहे और 26 जून 1977 को उन्हें राज्य की गैर कांग्रेस सरकार का सीएम बनाया गया था। लेकिन बाद में उमाभारती सरकार में वह कैबिनेट मंत्री बनना पड़ा
बाबूलाल गौर पहले मुख्यमंत्री बाद में शिवराज सरकार के बने मंत्री
मध्य प्रदेश में 2003 के विधानसभा चुनाव के बाद उमा मुख्यमंत्री बनीं और एक साल तक सबकुछ ठीक चल रहा था। फिर अचानक एक दिन 10 साल पुराने एक मामले ने ऐसे हालात पैदा किए कि उमा भारती को कुर्सी छोड़नी पड़ी और बाबूलाल गौर के रूप में राज्य को नया मुख्यमंत्री मिला।
74 साल की उम्र में बाबूलाल गौर मध्य प्रदेश के सीएम बने। वह 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक राज्य के सीएम रहे। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी फिर सत्ता में आई और शिवराज सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया।
यह तो महज कुछ नाम है , भारत की राजनीति में ऐसे और बहुत उदाहरण हैं जो सियासत के इस उतार चढ़ाव के साक्षी बने हैं।
महाराष्ट्र के नए बॉस बने शिंदे , देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री