एक चौंकाने वाली घटना में, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को गुजरात सरकार का महिमामंडन करने के एक टुच्चे प्रयास में गुजरात कांग्रेस विधायक के वीडियो को मनचाहे तरीके से संपादित करने और डालने का दोषी पाया गया है।
दसाडा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक नौशाद सोलंकी हाल ही में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी देखने गए थे। विधायक होने के नाते अधिकारियों ने उनसे बतौर प्रमाण वीडियो बना देने को कहा। नौशाद ने वाइब्स ऑफ इंडिया से कहा- अपने वीडियो में गलत तरीके से काट-छांट देख मैं स्तब्ध हूं। मैंने जहां कहीं भी नेहरू शब्द का इस्तेमाल किया है, वह काट दिया गया है। उन्होंने कहा कि गुजरात सरकार की ये घटिया तरकीब बेहद घातक है।
गुजरात में भाजपा सरकार ने हमेशा सरदार वल्लभभाई पटेल का महिमामंडन किया है। यहां तक कि कांग्रेस से उनका अपहरण कर लिया है। सभी भारत में मौजूद सभी खराबियों के लिए नेहरू को दोष देने की कला की जड़ें भी गुजरात में ही हैं।
जहां तक नौशाद सोलंकी की बात है तो उन्होंने अपने मूल वीडियो में कहा, “जब मैं यहां 182 मीटर ऊंची सरदार पटेल की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर खड़ा हूं, तो मुझे बेहद गर्व है कि 1960 के दशक में इस बांध को विकसित करने की नींव सबसे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी। बिना किसी अत्याधुनिक तकनीक के बांध को बनाया गया था।”
सोलंकी ने कहा, “फिर हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सपना देखा, जिससे यहां हम स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर खड़े हैं। एक गर्वित भारतीय और गुजराती के रूप में हम दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के कदमों में खड़े हैं और यहां के बेजोड़ कर्मचारी हमारा मार्गदर्शन के लिए मौजूद हैं। मैं सभी से अपील करूंगा कि वे यहां आएं और यह सुनिश्चित करें कि आपके पास कम से कम दो दिन रुकने की योजना हो। ”
हालांकि, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी द्वारा लगाए गए आधिकारिक वीडियो से नेहरू के नाम को आसानी से हटा दिया गया। संपादित वीडियो में स्क्रिप्ट इस प्रकार है, “जैसा कि मैं यहां सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी में खड़ा हूं । मैं बेहद गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। मैं अपने जीवन का एक अनुभव घर ले जा रहा हूं। हमारे वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी ने एक सपना देखा और यहां हम स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर खड़े हैं। मैं एक भारतीय और गुजराती के नाते गर्व महसूस कर रहा हूं, क्योंकि मैंने दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा का दौरा किया और अद्भुत सहायक कर्मचारियों से मुलाकात की। मैं सभी से इस जगह पर आने की अपील करता हूं और सुनिश्चित करने को कहता हूं कि आपके पास यहां कम से कम दो दिनों के ठहरने की योजना हो।
दिलचस्प बात यह है कि 4 फरवरी, 1948 को केंद्र सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया था कि वह देश की स्वतंत्रता को खतरे में डालने वाली नफरत और हिंसक ताकतों और देश के नाम को खराब करने वाली ताकतों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर प्रतिबंध लगा रही है। यह प्रतिबंध भारत के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने ही 73 साल पहले महात्मा गांधी की हत्या के मद्देनजर लगाया था।
अब 2021 को देखें तो नरेंद्र मोदी सरकार और संघ पटेल की विरासत पर दावा करने की कोशिश कर रहे हैं। लगता है कि वे भूल गए हैं कि ‘लौह पुरुष’ संघ के कट्टर आलोचक थे। इस बार, गुजरात के दसाडा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक नौशाद सोलंकी के एक वीडियो को संपादित करके मोदी सरकार ने पटेल की विरासत पर दावा करने का एक और प्रयास किया है। इसमें यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि ‘जवाहरलाल नेहरू’ का नाम गुजरात में कैसे एक बुरा शब्द बन गया है।
यह ध्यान देनी की बात है कि पटेल की विरासत पर दावा उस संघ यानी आरएसएस से आता है जिसे पटेल ने खुद एक साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। तत्कालीन गृह मंत्री और भारत के लौह पुरुष पटेल ने एक बयान में लिखा था, “उनके सभी भाषण सांप्रदायिक जहर से भरे हुए थे। जहर के अंतिम परिणाम के रूप में देश को गांधीजी के अमूल्य जीवन का बलिदान देना पड़ा।
आरएसएस पर प्रतिबंध 11 जुलाई, 1949 को रद्द कर दिया गया था। तब तत्कालीन आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवलकर इस प्रतिबंध को हटाने के लिए शर्तों के रूप में कुछ वादे करने पर सहमत हुए थे।