देशद्रोह जैसे कानून के दुरुपयोग को लेकर चल रहे विवाद के बीच इसको लेकर बुधवार को आए सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले पर कई तरह की बहस शुरू हो गई है। इस कानून के शिकंजे में फंसकर कई लोग जेलों में बंद हैं और कई लोग काफी कानूनी दांवपेचों और जद्दोजहद के बाद जमानत पर बाहर निकल सके हैं।
इस कानून के शिकंजे में फंसकर कई बड़े और चर्चित नेता जेल पहुंच गए। इनमें सितंबर 2012 में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी, अक्टूबर 2015 में कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल, फरवरी 2016 में कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार, फरवरी 2021 में कांग्रेस नेता अजय राय, अप्रैल 2021 में अमरावती की सांसद नवनीत राणा, अगस्त 2021 में सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क, सितंबर 2021 में यूपी के पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी और दिसंबर 2021 में धर्मगुरु कालीचरण शामिल हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2015 से 2020 तक इसके तहत कुल 356 केस दर्ज हुए और 548 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इसमें 12 लोगों की सजा हुई। 2015 में कुल 35 केस दर्ज हुए और 48 लोगों की गिरफ्तारी हुई, 2016 में 51 केस और 48 गिरफ्तारी, 2017 में 51 केस और 228 गिरफ्तारी, 2018 में 70 केस और 56 गिरफ्तारी, 2019 में 93 केस और 99 गिरफ्तारी और 2020 में कुल 73 केस दर्ज हुए और 44 लोगों की गिरफ्तारी हुई।
देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार होने तक सुप्रीम कोर्ट ने इसके इस्तेमाल पर पर्याप्त रोक लगा दी है. कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से कहा है कि पुनर्विचार होने तक आईपीसी की धारा 124ए के तहत कोई नया मामला दर्ज न करें. मामले की अगली सुनवाई 3 जुलाई को तय की गई है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि लंबित मामले पर यथास्थिति बनाए रखी जाए. देशद्रोह के मामले में लंबित मामले और जिसके तहत आरोपी जेल में बंद है, जमानत के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है। देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मुद्दे पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि हमने राज्य सरकार को भेजे जाने वाले निर्देशों का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है. तद्नुसार राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिया जाएगा कि जिला पुलिस कप्तान या एसपी या उच्च स्तरीय अधिकारी की अनुमति के बिना देशद्रोह की धारा के तहत कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है. इस तर्क के साथ उन्होंने कोर्ट से कहा कि फिलहाल कानून को अवरुद्ध नहीं किया जाना चाहिए.
उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस अधिकारी देशद्रोह के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के समर्थन में उचित कारण बताएंगे. कानून पर पुनर्विचार होने तक वैकल्पिक समाधान संभव है।दूसरी ओर, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने मांग की कि देशद्रोह कानून पर तुरंत अंकुश लगाया जाए। इन तमाम दलीलों के बाद कोर्ट ने अब राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. उन्होंने केंद्र सरकार से कानून पर पुनर्विचार करने की भी मांग की। अदालत ने कहा कि जब तक समीक्षा नहीं हो जाती तब तक अधिनियम के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया जाएगा। साथ ही लंबित मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है.
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई कर रही है। केंद्र ने इस संबंध में एक हलफनामा दायर कर कहा है कि सरकार ने देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने और इसकी पूरी जांच करने का फैसला किया है. उन्होंने यह भी कहा कि वह देशद्रोह अधिनियम की धारा 124ए की संवैधानिक वैधता पर पुनर्विचार करेंगे। हालांकि, अदालत ने केंद्र के पक्ष को मान्यता नहीं दी और कानून वर्तमान में वर्जित है।
देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट लगायी रोक ,नहीं दर्ज होगा नया मामला