वह टीवी पर खबरें कम ही देखते हैं। अखबार भी नहीं पढ़ते। वह ईमेल नहीं लिखते या नोट्स नहीं लेते हैं। दशक भर से लैपटॉप का प्रयोग नहीं किया है। वह सिर्फ फोन का इस्तेमाल करते हैं। तीन साल में 86 ट्वीट किए हैं, जहां उनके पांच लाख फॉलोअर्स हैं। उनके शब्द हैं, “मैं काम और जीवन संतुलन में कतई विश्वास नहीं रखता। सच कहूं तो काम के अलावा और किसी में मेरी दिलचस्पी नहीं है।”
यह हैं प्रशांत किशोर। देश के सबसे प्रसिद्ध राजनीतिक सलाहकार और रणनीतिकार। उन्हें राजनेताओं के एक हाई-प्रोफाइल हैंडलर और एक चतुर रणनीति के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने चुनाव जीतने और लोगों को प्रभावित करने की कला को सिद्ध कर लिया है। 2011 के बाद से श्री किशोर और उनकी राजनीतिक सलाहकार फर्म ने नौ में से आठ चुनावों में सफलता हासिल की है। इस दौरान उन्होंने विभिन्न दलों के लिए अभियान चलाया है।
श्री किशोर ने 2014 में भाजपा के नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से लेकर क्षेत्रीय पार्टी तृणमूल कांग्रेस की नेता और कट्टर प्रतिद्वंद्वी मनता बनर्जी तक को सफलता के गुरुमंत्र दिए हैं, जिसका नतीजा मई में एक पुनरुत्थान वाली भाजपा की पश्चिम बंगाल में पराजय के रूप में दिखा। लेकिन हाल के दिनों में वह एक बार फिर तब सुर्खियों में आए, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित प्रमुख विपक्षी नेताओं के साथ बैठक की। इस दौरान नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ गठबंधन बनाने में मदद करने की कोशिश की। इससे उनके कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें भी खूब लगीं। उन्होंने खुद भी कहा, “मैं निश्चित रूप से वह नहीं करने जा रहा हूं जो मैं पहले कर रहा था। मेरे पास कुछ विकल्प हैं, लेकिन कोई निर्णय नहीं लिया है। बहुत संभव है कि मैं कुछ ऐसा कर दूं जिसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं हो। जैसे ही मैं फैसला करूंगा, इसे औपचारिक रूप से साझा भी करूंगा।”
गौरतलब है कि आम चुनाव अभी तीन साल दूर हैं। उनका मानना है कि भाजपा – जो 2024 में तीसरा कार्यकाल चाह रही है – अजेय नहीं है। उन्होंने कहा, ” सही रणनीति और प्रयासों से उन्हें हराया जा सकता है।” उनका कहना है कि भाजपा पूर्वी और दक्षिणी भारत के सात राज्यों में 200 सीटों में से पांच से अधिक सीटें नहीं जीत पाई है, क्योंकि क्षेत्रीय दल पार्टी को प्रभावी ढंग से प्रवेश करने से रोकने में सक्षम हैं। बाकी 340 सीटें देश के उत्तर और पश्चिम में हैं, जहां बीजेपी का दबदबा है। भाजपा के लिए चुनौती इन हिस्सों की लगभग 150 सीटों पर है, जहां भाजपा के लिए जीत का अंतर कम रहा है।
श्री किशोर कहते हैं, “मैं कभी भी मतदाताओं का अनुमान लगाने की कोशिश नहीं करता। मैं बस यह पता लगाने के लिए सिस्टम विकसित करने की कोशिश करता हूं कि लोग क्या कह रहे हैं।” जैसे 2015 में उनकी टीम उनके गृहराज्य बिहार के 40,000 गांवों में वहां की समस्याओं को जानने के लिए गई। नंबर एक मुद्दा जल निकासी था। उन्होंने पाया कि पुलिस थानों में पांचवीं शिकायतें खराब जल निकासी पर झगड़े से संबंधित थीं। इसी तरह पिछले साल बंगाल में उन्होंनं लोगों की शिकायतों को दर्ज करने के लिए एक हेल्पलाइन स्थापित करने में मदद की। 70 लाख लोगों ने डायल किया। उनमें से अधिकांश ने देरी से डिलीवरी या जाति या सकारात्मक कार्रवाई प्रमाण पत्र पर भ्रष्टाचार की शिकायत की। शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए सरकार ने छह सप्ताह में ऐसे 26 लाख प्रमाणपत्र जारी किए।
श्री किशोर विनम्रता से कहते हैं, “हम कुछ अंतर करते हैं, लेकिन यह निर्धारित करना मुश्किल है कि वास्तव में कितना।”