14 दिन तक कोविड-19 का इलाज करवाकर छुट्टी ले रही महिला को अस्पताल के स्टाफ ने कहा, ‘माफ करना मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता। हमें नगर निगम द्वारा निर्धारित दरों के अनुसार स्वीकृति मिली है। मैं अनुरोध के अनुसार कमरे की फीस नहीं बदल सकता।’
वह तर्क देती है, ‘लेकिन, मेरी समस्या यह है कि मुझे प्रति दिन केवल 6,000 रुपये तक के कमरे के फीस की अनुमति है। आपकी फीस अधिक है। ग्रुप इंश्योरेंस पॉलिसी होने और पात्रता के बावजूद मुझे क्लेम नहीं मिलेगा।’
कर्मचारी कहता है, ‘मैं आपकी समस्या को समझता हूं, लेकिन मैं इसे बदल नहीं पाऊंगा।’
महिला ने अनुरोध किया, ‘लेकिन मैं कोई छूट नहीं मांग रही हूं। मैं केवल कमरे की फीस में बदलाव चाहती हूं।’
कर्मचारी विनम्रता और दृढ़ता से कहता है, ‘मुझे माफ करें। मैं आपकी मदद नहीं कर सकता।’
यह घटना राजकोट के एक अस्पताल के बिलिंग काउंटर पर हुई। यह ऐसी अकेली घटना नहीं है।
पिछले साल से दुनियाभर में फैली कोविड -19 महामारी के बाद से इस तरह की बातचीत आम हो गई है, क्योंकि असहाय कंज्यूमर इलाज के खर्च के बोझ तले दबे हुए हैं, जो अपनी बीमा योजना से अधिकतम लाभ पाने के लिए अस्पताल के कर्मचारियों के साथ जूझ रहे होते हैं।
जैसे-जैसे खर्च बढ़ता है, वैसे ही बीमा का क्लेम और प्रीमियम भी।
घाटे की गणना
31 मार्च तक, बीमा कंपनियों को पूरे भारत में घातक वायरस के इलाज के लिए 14,560 करोड़ रुपये के 9.8 लाख क्लेम मिले थे। दूसरी लहर (1 अप्रैल से 14 मई) के बीच बीमा कंपनियों को 8,385 करोड़ रुपये के 5 लाख क्लेम मिले। केवल 44 दिनों में, कोविड -19 के क्लेम में 57 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि गुजरात में भी इसी तरह का उछाल दर्ज किया गया है।
जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (जीआईसी) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, बीमा उद्योग ने 7 अप्रैल तक 14,738 करोड़ रुपये के 10.07 लाख कोरोनावायरस क्लेम दर्ज किए हैं। इनमें से, बीमाकर्ताओं ने 7,907 करोड़ रुपये के 8.6 लाख क्लेम का निपटान किया है।
वैसे तो 85 प्रतिशत क्लेम का निपटारा कर दिया गया है, लेकिन राशि के हिसाब से यह क्लेम की गई राशि का केवल 53.6 प्रतिशत है। सेक्टर कैसे काम करता है और राजकोट अस्पताल में महिला मरीज बिलिंग स्टाफ के साथ बहस क्यों कर रही थी, इसका एक स्पष्ट उदाहरण है।
ग्राहकों की बीमा से जुड़ी मुश्किलें दूर करने वाली वाली कंपनी इंश्योरेंस समाधान के सह-संस्थापक और सीईओ दीपक भुवनेश्वरी बताते हैं, ‘क्लेम रिजेक्ट होने के दो प्रमुख कारण हैं – ऐसे मामले जहां अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है या उपचार की कोई तय प्रक्रिया नहीं है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे सामने ऐसे 90 से ज्यादा मामले आए हैं और इनमें से 50 प्रतिशत में हमें सफलता मिली है। कई मामलों में अब तक समाधान नहीं मिला है।’
मांग ने बढ़ाया प्रीमियम
कोविड-19 महामारी से पहले, गैर-जीवन बीमा प्रीमियम में सबसे बड़ा हिस्सा मोटर बीमा सेग्मेंट था, लेकिन अब इसका बड़ा हिस्सा हेल्थ सेग्मेंट की ओर चला गया है। स्टैंडअलोन हेल्थ इंश्योरेंस देने वाली कंपनियों ने जून में 1,556.9 करोड़ रुपये की प्रीमियम वृद्धि दर्ज की है, जो 46.6 प्रतिशत की वृद्धि है। इसी तरह की तेजी तिमाही आंकड़ों में भी देखी गई है। 55.5 प्रतिशत की छलांग के साथ यह प्रीमियम जून 2020 में 2,715 करोड़ रुपये से बढ़कर 4,222.8 करोड़ रुपये हो गया।
स्वास्थ्य बीमा की बढ़ती मांग ने प्रीमियम बढ़ा दिया है। करीब छह माह तक स्थिरता के बाद राशि में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की जा रही है।
पॉलिसीएक्स डॉट कॉम के अनुसार, पिछली तिमाही में हेल्थ इंश्योरेंस प्राइस इंडेक्स में 4.87 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। एक विज्ञप्ति के मुताबिक, अब औसत बीमा प्रीमियम 25,197 रुपये है। पॉलिसीएक्स डॉट कॉम एक प्रमुख इंश्योरेंस एग्रीगेटर है।
पॉलिसीएक्स डॉट कॉम के संस्थापक और सीईओ नवल गोयल ने कहा, ‘कोविड -19 के कारण क्लेम बढऩे से सेक्टर में यह हलचल दिखी है। इसके अलावा, मानसिक विकार, आनुवंशिक रोग, तंत्रिका संबंधी विकार, मानसिक विकार आदि जैसी कई बीमारियों का अतिरिक्त कवरेज भी हेल्थ प्रीमियम में तेज वृद्धि का कारण है।’
गोयल कहते हैं, ‘समग्र बीमा क्षेत्र में वृद्धि दिख रही है। अभूतपूर्व हालात ने बीमा क्षेत्र पर दोहरा दबाव डाला है और इस उद्योग ने पिछले कुछ महीनों में मैनेजमेंट के लिए कड़ी मेहनत की है। हालांकि, कुछ दबाव ग्राहकों को भी उठाना पड़ता है।’
गुजरात की क्या स्थिति है?
गुजरात में भी महामारी के दौरान हेल्थ इंश्योरेंस में बड़ी वृद्धि देखी गई। चूंकि राज्य-स्तरीय डेटा केवल दिसंबर, 2020 के अंत तक का ही उपलब्ध है, इसलिए दूसरी लहर के असर का अभी आकलन नहीं किया जा सकता है।
जीआईसी के आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 की जून तिमाही में गुजरात में 362.39 करोड़ रुपये के प्रीमियम वाली 2,95,416 हेल्थ बीमा पॉलिसियों का रजिस्ट्रेशन हुआ था। पिछले साल की जून तिमाही (महामारी की पहली लहर) में नई पॉलिसी की संख्या 82 प्रतिशत बढ़कर 4,72,754 हो गई, जिनमें 405.02 करोड़ रुपये का प्रीमियम आया।
हालांकि सबसे ज्यादा उछाल सितंबर तिमाही में देखने को मिला। सितंबर, 2020 में सालभर पहले की तुलना में कुल पॉलिसियों की संख्या 130 प्रतिशत बढ़कर 6,79,214 करोड़ हो गई और प्रीमियम का भुगतान 56 प्रतिशत बढ़कर 534.48 करोड़ रुपये हो गया।
सितंबर, 2020 में क्लेम में भी फिर बड़ी उछाल दर्ज की गई। 2019 में 253.17 करोड़ रुपये के क्लेम किए गए, जो 2020 में 50 प्रतिशत बढ़कर 380.9 करोड़ रुपये हो गए।