वास्तव में ऑटिज्म है क्या? ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर विकास संबंधी मस्तिष्क विकार है, जो पीड़ित व्यक्ति के दूसरों के साथ मेलजोल, सामाजिक संपर्क और संचार को लेकर समस्याएं पैदा करता है। यह रोग व्यवहार के सीमित और दोहराव वाले पैटर्न को भी प्रदर्शित करता है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार में “स्पेक्ट्रम” शब्द लक्षणों और गंभीरता की विस्तृत श्रृंखला को दर्शाता है।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर में ऐसे विकार शामिल हैं, जिन्हें पहले अलग माना जाता था- ऑटिज्म, एस्परगर सिंड्रोम, बचपन का विघटनकारी विकार और व्यापक विकास संबंधी बीमारी का एक अनजाना रूप। कुछ लोग अभी भी “एस्परगर सिंड्रोम” नाम का उपयोग करते हैं, जिसे व्यापक रूप से ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार के हल्के अंत के रूप में माना जाता है।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार बचपन में ही प्रकट होता है और बाद में सामाजिक कार्य करने में कठिनाइयों का कारण बनता है। जैस, सामाजिक रूप से, स्कूल में और कार्यस्थल पर व्यवहारगत कमियां दिखती हैं। ऑटिज्म के लक्षण अक्सर बच्चों में जीवन के पहले वर्ष के भीतर ही मिल जाते हैं। वैसे बहुत कम बच्चे ही पहले वर्ष में सामान्य रूप से विकसित होते दिखाई देते हैं, लेकिन बाद में 18 से 24 महीने की उम्र के बीच में ऑटिज्म के लक्षण दिखने लगते हैं।
यूं तो ऑटिज्म स्पेक्ट्रम की स्थिति का कोई इलाज नहीं है, लेकिन शुरुआती हस्तक्षेप कई बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। इस विश्व ऑटिज्म स्पेक्ट्रम जागरूकता दिवस पर वाइब्स ऑफ इंडिया ने शहर के विशेषज्ञ डॉ. केतन पटेल और उनके कुछ रोगियों से मिलने का फैसला किया। डॉ. केतन पटेल कुछ ही वर्षों के भीतर ही ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के इलाज करने के अपने तरीके से प्रसिद्ध हो गए हैं। डॉ. केतन और टीम होमपाथ ने होम्योपैथी और वैकल्पिक चिकित्सा विज्ञान में प्रमाणपत्र, स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए यूरोप, ब्रिटेन और मध्य पूर्व में एक प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थान के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम बनाया है।
जैसे ही वह अपने रोगी मोहक (बदला हुआ नाम) से पहली बार मिलते हैं, वह आसानी से तभी बता देते हैं कि बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है या नहीं। साढ़े छह साल के बच्चे मोहक ने सुधार के संकेत दिखाए थे। मोहक को कम उम्र में ऑटिज्म का पता चला था। जब उसने ऐसे लक्षण दिखाए, जो समाज के लिए सामान्य नहीं थे, तब उसके माता-पिता को उसके व्यवहार के बारे में लगातार बताया जाता था। उन्होंने कुछ एलोपैथिक सप्लीमेंट्स के साथ इसका इलाज करने की कोशिश की। फिर डॉ. केतन पटेल से संपर्क किया और दो साल के भीतर बच्चे ने स्पष्ट बातचीत और व्यवहार में सामान्य तरीके से सुधार के तत्काल परिणाम दिखाए। उनके पिता अपनी खुशी को रोक नहीं सके, क्योंकि उन्होंने बेटे की होली वाली तस्वीरें दिखाईं। मोहक ने उनके लिए जो चित्र बनाया था, उसे देखकर वह मुस्कुराना बंद नहीं कर सके।
डॉ. केतन पटेल के अनुसार, ऑटिज्म का संबंध टीबी और उसके माता-पिता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से है। यदि मां को थाइरॉइड हुआ है तो बच्चे को इस तरह की समस्या होने की आशंका रहती है। न केवल थायरॉइड, बल्कि गर्भवती होने के दौरान दर्दनाक स्थितियों का सामना करना भी कुछ बच्चों के लिए ऑटिज्म से पीड़ित होने का एक कारण होता है। ऑटिज्म का इलाज 5 साल की उम्र के भीतर किया जाना चाहिए, वरना बच्चे का इलाज करना और उसे अपने अनुरूप ढालना मुश्किल हो जाता है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि ऐसे बच्चों में नीरस गतिविधियों को कम करने के लिए कोई स्क्रीन समय या न्यूनतम स्क्रीन समय प्रदान नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें सलाह दी जाती है कि वे व्यायाम का समय और जैविक भोजन ही करें, क्योंकि चीनी उच्च स्तर की सक्रियता का कारण बन सकती है।
जैसे ही अन्य परेशान माता-पिता कमरे में प्रवेश करते हैं, डॉक्टर उन्हें आशा की किरण दिखाते हुए शांत करते हैं। नन्ही अनीशा (बदला हुआ नाम) को हाल ही में ऑटिज्म का पता चला है। वह डॉक्टर के पास पहली बार आई थी। माता-पिता की तरह वह भी घबराई हुई थी। रोना बंद नहीं कर सकती थी, लेकिन डॉ. केतन ने तुरंत उसका ध्यान भटका दिया। जैसे ही उन्होंने उसका निदान किया, माता-पिता को भी शांत किया और सुनिश्चित किया कि उनके पास बच्चे से निपटने की पूरी क्षमता है। वह बताते हैं कि आम तौर पर जब किसी बच्चे को ऑटिज्म का पता चलता है तो वे या तो उसे डांटकर शांत कर देते हैं या किसी भी भारतीय माता-पिता के रूप में वे उन्हें मारने से पहले दो बार नहीं सोचते हैं। लेकिन यह मदद नहीं करता है, बल्कि उसे और भड़का देता है। गुस्से को दबाने और रोने के लिए माता-पिता को उनके व्यवहार को नजरअंदाज करना चाहिए और उन्हें खुद सीखने देना चाहिए। स्व-शिक्षा सीखने का सबसे अच्छा तरीका है। मिठाई, नींद की कमी और कब्ज ऐसे विशेष बच्चों में बहुत अधिक आक्रामकता पैदा करते हैं।
ऐसे बच्चों के माता-पिता को सलाह दी जाती है कि वे अपने बच्चों को स्वस्थ और खुश रखें। उन्हें स्वस्थ भोजन के साथ-साथ खूब दौड़ने और खूब व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। ऐसे बच्चों को पूरी तरह से सामान्य होने और दुनिया का सामना करने के लिए तैयार होने से पहले स्कूल नहीं जाना चाहिए। एक कठिन लड़ाई लड़ने के लिए ट्रीटमेंट के बाद ही थेरेपी का सुझाव दिया जाता है।